रा.ना.वि. प्रशिक्षण
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में प्रशिक्षण –
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नाट्य कला में तीन वर्षीय पूर्णकालिक डिप्लोमा पाठ्यक्रम प्रदान करता है।
उद्देश्य
पाठ्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य छात्रों को रंगकर्म अभ्यास के लिए तैयार करना है इसके लिए व्यावहारिक कौशल की विविधता को विकसित करना आवश्यक हैं और साथ ही ज्ञान के संग्रह को संचित करना भी। जबकि अध्यययन के सभी क्षेत्रों को अलग-अलग मूल्यांकित किया जाता है और प्रत्येक में उच्च मानक के कार्य की मांग हैं, पाठ्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य है ग्रुप की सामूहिक संरचना के अंदर ही सृजनात्मक कल्पना और इसकी अभिव्यक्ति की अमूर्त संकल्पना का विकास।
अध्ययन के विषय
आधुनिक भारतीय नाटक
- समकालीन रंग परिदृश्य पर विशेष जोर देते हुए 19वीं सदी के मध्य से लेकर आधुनिक भारतीय रंगमंच का विकास।
- भारत में क्षेत्रीय भाषायी रंगमंच : सिद्धांत और व्यवहार
भारतीय शास्त्रीय नाटक
भारतीय शास्त्रीय नाटक और सौंदर्यशास्त्र का ज्ञान। संस्कृत नाटक का इतिहास। नाट्यशास्त्र में वर्णित संरचना के आधार पर चुने हुए संस्कृत नाटकों का विस्तृत विश्लेषण व व्याख्या; उनकी प्रस्तुति, प्राचीन काल में दर्शक और समकालीन रंगमंच में उनकी सार्थकता।
पाश्चात्य नाटक
यूरोपीय रंगमंच का इतिहास, विशेष रूप से यूनानी त्रासदियां, शेक्सपियर के नाटक, आधुनिक नाटकों का अध्ययन।
आवाज़ और संभाषण
श्वास-नियंत्रण, स्पष्टता, श्रव्यता प्राप्त करने हेतु आवाज़ व संभाषण के अभ्यास। इनके द्वारा संभाषण में कलात्मक प्रभाव की अभिव्यक्ति होती है, जिससे छात्र सहजता से विभिन्न प्रकार की भूमिकाएं कर सकते हैं।
योग
- योग का उद्देश्य आसनों, क्रियाओं तथा प्राणायाम के अभ्यास द्वारा छात्रों को शारीरिक स्वास्थ्य, सतर्कता, लालित्य, एकाग्रता और उच्चारण क्षमताओं का पूर्ण उपयोग करने के योग्य बनाना है।
मुखाभिनय व गति संचालन
- आधुनिक गति संचालन के सिद्धांत और पद्धति
- शिल्पशास्त्र और नाट्यशास्त्र के सिद्धांतों का अध्ययन
- शारीरिक भाव-भंगिमाओं जैसे हाव-भाव, मुद्राओं और गति संचालन द्वारा मानवीय अनुभव और गतिविधियों की अभिव्यक्ति
- व्यक्तियों व वस्तुओं के शारीरिक अवलोकन व अभिव्यक्ति द्वारा अभिनय (शैलीबद्ध अभिनय)
रंग संगीत
- नाटक के आलेख से विकसित विभिन्न ध्वनियों और ताल-संरचनाओं के ज्ञान द्वारा छात्रों की सांगीतिक संवेदनशीलता में अभिवृद्धि करना
- सौंदर्यशास्त्रीय संदर्भ और रंगमंच के विशिष्ठ उपयोगों के आधार पर ‘टोटल थिएटर’ की अवधारणा के साथ मंच संगीत में भाव पैदा करना।
अभिनय और आशु-अभिनय
- अभिनेताओं की शारीरिक और स्वर-संबंधी प्रतिभा का परिष्कार तथा उनकी कल्पनाशीलता और संवेदनशीलता का उपयोग कर उनकी प्रतिभा को निखारना
- परिवेश और अनुभव के प्रति जागरूकता बढ़ाना तथा अभिनय में तकनीक और कौशल का ठोस आधार प्रदान करना।
- अभिनय के प्रमुख कोडब सिद्धांतों और पद्धतियों को छात्रों को उपलब्ध कराना।
रंग स्थापत्य
- नाट्यशास्त्र में वर्णित व दक्षिण पूर्व एशिया, चीन और जापान के रंगमंचों के आधार पर भारत और अन्य पूर्वी देशों में रंगमंच का विकासा
- भारत व अन्य पूर्वी देशों में समसामयिक रंग-स्थापत्य व मंच परिकल्पना, विशेषकर भारतीय व पूर्वी देशों की परिस्थितियों के अनुकूल यायावर व स्थिर मंच अभिकल्पना, मुक्ताकाशी रंगमंच तथा अन्य स्थापत्य परंपराएं।
- यूनानी काल से लेकर आधुनिक काल तक पश्चिम (विश्व) के विभिन्न रंगमंच रूपों और मंच अभिकल्पना का क्रमबद्ध विकास।
दृश्यबंध और मंच टैक्नॉलोजी अभिकल्पना
- रंग अभिकल्पना की अवधारणा व दर्शन
- मंच अभिकल्पकों के सिद्धांत व पद्धतियां
- मंच-निर्माण तथा मंच-तकनीक
- मंच अभिकल्पना व मॉडल निर्माण के आधारभूत सिद्धांत
वस्त्र अभिकल्पना
- वस्त्र अभिकल्पना का इतिहास व्याख्या और विभिन्न शैलियां
प्रकाश व्यवस्था
- मंच प्रकाश के उद्देश्य
- प्रकाश योजना
- प्रकाश उपकरण
- विद्युत और स्विच बोर्ड नियंत्रण का बुनियादी अध्ययन
प्रस्तुति प्रक्रिया
- रंगमंच भाषा का विकसित करने के लिए तकनीकियां और संवेदनशीला
- संगीत, मंच सामग्री, मंच और प्रकाश को शामिल कर छोटे-छोटे विषय तैयार कर कल्पना को विकसित करना
- नाटकों की सूचना को विकसित करना और उन्हें समझना
मूल्यांकन पाठ्यक्रम और कार्यशालाएं
- अध्ययन के उपरोक्त विषयों के अतिरिक्त विद्यालय छात्रों के लिए भारतीय कला एवं संस्कृति, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र और इतिहास के विभिन्न पक्षों पर मूल्यांकन पाठ्यक्रम और कार्यशालाओं का आयोजन करता है।