सिक्किम रंगमंच प्रशिक्षण केन्द्र, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का पहला केन्द्र है जो गंगटोक की हरी-भरी मनोहर वादियों में बसा हुआ है और जो कुल बारह महीने की अवधि का एक गहन रंगमंच प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है जिसमें तीन सत्र चार-चार महीने के होते हैं। इस तरीके को तीन-अंश सिक्किम मोड्यूल कहा जाता है।
पहला मोड्यूल अभिनेताओं/प्रतिभागियों के प्रशिक्षण और उन्हें तैयार करने पर केन्द्रित है। इस गहन चरण में योग, गति, वाक एवं संभाषण, संगीत और अभिनय के विभिन्न तरीके और साथ ही दृश्यबंध (वास्तविक और भौतिक रंगमंच) शामिल हैं।
दूसरा मोड्यूल तकनीकी प्रशिक्षण पर केन्द्रित है जिसमें दृश्यबंध परिकल्पना, प्रकाश व्यवस्था, वस्त्रसज्जा, रूप-सज्जा, रंगमंच शिल्प, शरीर संचालन, फर्श पर की जाने वाली गतिविधि (एक्रोबैट्स, एरियल), दैहिक अभिनय, आलेख लेखन, अभिनय, रंगमंच संगीत, मंच सामग्री और मुखौटा बनाने और अन्य पहलुओं के साथ ही एक प्रस्तुति तैयार करना भी शामिल है।
तीसरा मोट्यूल में प्रतिभागियों ने देश के कई स्थानों पर पेशेवर प्रस्तुति का दौरा कर इसका अनुभव लिया। यह दौरा प्रतिभागियों को देश की विभिन्न संस्कृतियों, लोगों और क्षेत्र से परिचय करवाने के लिए उनको पर्याप्त अवसर उपलब्ध करवाने के लिए रखा गया। केन्द्र ने पहले से ही सरकारी स्कूलों के साथ कई कार्यशालाएं संचालित की हैं और नाटक, संगीत, नृत्य, शिल्प एवं मूर्ति कला के पारंपरिक रूपों के क्षेत्रों में प्रतिभा को विकसित करने पर कार्य कर रहा है। केन्द्र ने सितंबर-अक्तूबर 2012 के दौरान युकसम में एक माह की लंबी अवधि की ‘बाल रंगमंच कार्यशाला’ संचालित की है। इस एक माह की लंबी अवधि की कार्यशाला में छात्रों को गहन प्रशिक्षण दिया गया। इन छात्रों ने कार्यशाला उपरांत ‘द वूल्फ ऑफ द माउंट खंग-चेन-दज़ोन्गा’ नाटक तैयार किया।
एक अन्य कार्यशाला 31 दिसंबर, 2012 से 1 फरवरी, 2013 तक केन्द्र द्वारा मणिराम भांजयंग में संचालित की गई।
10 मार्च, 2013 को केन्द्र ने जोधपुर में पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा आयोजित ऑक्टेव उत्सव में दो नाटक ‘कालो सुनाखरी और ‘हम ही अपना आप’ प्रस्तुत किए। ये नाटक 23-24 मार्च, 2013 को अगरतला में भी प्रस्तुत किए गए।
सिक्किम की संस्कृति समृद्ध है और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंच के माध्यम से देश की सांस्कृतिक विभिन्नताओं को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसलिए राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का सिक्किम केन्द्र उभरते हुए कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए क्षेत्र में रंगमंच को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित कर रहा है।
हाल ही में रानावि, सिक्किम केन्द्र ने सिक्किम की परंपरा और संस्कृति पर एक गैर-शाब्दिक नाटक दर्शाया जिसे देखकर दर्शक मंत्रमुग्ध रह गए और केन्द्र के इस प्रयास के प्रशंसक बन गए।
येशे दोरजी थोंगची द्वारा लिखित उपन्यास ‘‘सोनम’’ का रूपांतरण, यह नाटक दो सिक्किमी युवाओं की प्रेम कहानी के बारे में है। अभिलाष पिल्लई द्वारा निर्देशित और हस्ता चेत्री द्वारा लिखित यह नाट्य आलेख सिक्किम के समृद्ध इतिहास को दर्शाता है कलाकार जिन्होंने केवल अपनी भाव भंगिमाओं के ज़रिए अपने आपको अभिव्यक्त किया, का कार्य सराहनीय है।
अभिलाष पिल्लई, निर्देशक के शब्दों में ‘‘यह देश का ऐसा पहला कार्यशील राज्य केन्द्र है जो कि शिक्षण के साथ-साथ प्रस्तुतियां भी मंचित करता है।’’ इससे इस बात की पुष्टि होती है कि यहां पर रंगमंच का बृहत कार्यक्षेत्र है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली से प्रशिक्षित ‘द थियेटर ग्रुप’, जो सिक्किम में युवा वर्ग के बीच कला को उन्नत करने के लिए बहुत मेहनत कर रहा है,
बिपिन कुमार, निर्देशक, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, सिक्किम केन्द्र ने कहा, ‘‘कलाकार जो यहां काम कर रहे हैं, वे राज्य के सभी चारों जिले से यहां आते हैं। हमारा उद्देश्य राज्य की कला और संस्कृति को प्रोत्साहित करना है और सिक्किम में रंगमंच के प्रति जागरूकता फैलाना है।
श्याम प्रधान, दर्शकों में से एक व्यक्ति जिसने वह नाटक देखा था, ने कहा, ‘कालो सुनाखरी’ नाटक आधुनिक और कालजयी तकनीकों का मिश्रण है। यह उस स्तर को दर्शाता है जहां समकालीन रंगमंच पहुँच चुका है। यह नाटक मेरे लिए एक अदभुत सा अनुभव था।
युवाओं के बीच रंगमंच को प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, उत्तर-पूर्व की कई राज्य सरकारों के साथ कार्य कर रहा है।
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