उत्सवविद्यालय के नियमित उत्सव
भारत रंग महोत्सवराष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ने एक दशक पूर्व देशभर में रंगकर्म के विकास और संवर्धन के लिए भारत रंग महोत्सव की शुरुआत की। एक राष्ट्रीय उत्सव जिसमें भारत के कुछ अति सृजनात्मक रंगमंडलियों के कार्यों को दर्शाया जाता था, से यह उत्सव अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम बन गया जिसमें विश्वभर से रंगमंडलियों को आमंत्रित किया जाता है। भारत रंग महोत्सव आज रंगमंच को पूर्णत: समर्पित एशिया का सबसे बड़ा रंगमंच उत्सव माना जाता है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रस्तुतियों/प्रदर्शनों के मंचन होने के साथ-साथ प्रदर्शनियां, पुरस्कार वितरण समारोह, निर्देशकों और कलाकारों के साथ आम जनता व अन्य पेशेवर रंगकर्मियों की अंतरंग बातचीत, उल्लेखनीय प्रस्तुतियों को दर्शाती छायाचित्र प्रदर्शनियां, खुला मंच और बैठकें और दूसरे शहर में भारंगम का एक लघु संस्करण जिसमें भारंगम की कुछ प्रस्तुतियां मंचित की जाती हैं, भी शामिल है पिछला भारत रंग महोत्सव 6-22 जनवरी 2010 तक आयोजित किया गया जिसमें देश विदेश से 13 देश आमंत्रित किए गए जिन्होंने अपनी 76 प्रस्तुतियां मंचित कीं। इस 12वें भारंगम की मुख्य विशेषताएं थीं; नाट्य मंथन दो दिवसीय कार्यक्रम जिसमें देश-विदेश से रंग विद्वानों और रंगकर्मियों ने प्रतिभागिता की, और नाट्य नाद –रंग संगीत और गीत जिसमें जाने-माने संगीत व्यक्तिवों और मंडलियां जो कि भारत की रंगमंच परंपरा के अभिन्न अंग रहे हैं, के संगीत की प्रस्तुति देने वाली एक विशेष संध्या।
बाल-संगम
प्रत्येक दूसरे वर्ष संस्कार रंग टोली एक राष्ट्रीय स्तर का उत्सव आयोजित करती है, जिसका स्वरूप मूलत: एक सांस्कृतिक मेले की तरह होता है और उद्देश्य शैक्षिक। बाल संगम पारंपरिक कला परिवारों, गुरु-शिष्य परंपरा और संस्थानों के बच्चों द्वारा विभिन्न पारंपरिक लोक कलाओं के प्रदर्शन का एक संगम है। बाल संगम का प्रमुख उद्देश्य बच्चों को अपनी पारंपरिक लोक कलाओं से जुड़े रहने के लिए प्रोत्साहित करना है ताकि आज के इस तेजी से बदलते युग में हमारी सांस्कृतिक धरोहर संरक्षित रह पाए। अब तक टी.आइ.ई. कंपनी ने 40 से भी अधिक ऐसी मंडलियां जो बाल कलाकारों द्वारा लोक प्रस्तुतियों के लिए जानी जाती हैं, को आमंत्रित किया है बच्चों द्वारा विभिन्न लोक एवं प्रदर्शनकारी परंपराओं के एक दृश्यात्मक और अनूठे संगम की प्रस्तुति के साथ-साथ उत्सव में ऑरिगेमी, मिट्टी के बर्तन, कठपुतली कला, आदिवासी शिल्प, रिसाइक्लिंग इत्यादि जैसी गतिविधियों की कला और शिल्प की कार्यशालाएं शामिल हैं। पहला बाल संगम 12-18 अक्तूबर 2008 तक आयोजित किया गया।
जश्ने बचपनजश्नेबचपन समारोह में देशभर से विभिन्न क्षेत्रों और भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली रंगमंडलियां जो बच्चों के साथ और बचचों के लिए कार्य करती है, के कार्यों को दर्शाया जाता है। प्रख्यात और उभरते हुए रंग निर्देशक और प्रतिष्ठित रंगमंडलियां, जो बच्चों के लिए और बच्चों के साथ कार्य करती हैं, अपनी पूर्ण प्रस्तुति के साथ इस उत्सव में प्रतिभागिता करती है। अभी तक 9 ‘जश्ने बचपन’ समारोह आयोजित किए जा चुके हैं। हाल ही में आयोजित ‘जश्ने बचपन’ 12-18 अक्तूबर 2009 के दौरान रहे।
रविवारीय क्लब उत्सव
बच्चों के लिए ग्रीष्मकालीन रंगमंच कार्यशालाओं की सफलता और लोकप्रियता को देखते हुए रा.ना.वि. की संस्कार रंग टोली ने रविवारीय क्लब शुरु करने का निश्चय किया जो कि मूलत: ग्रीष्मकालीन रंगमंच कार्यशालाओं का ही विस्तार है। इस क्लब में स्वयं तैयार करने की प्रक्रिया के माध्यम से विभिन्न आयु वर्ग के बच्चे मूल रूप से नाटक को स्वयं तैयार करते हैं। इस क्लब में बच्चे मिल-जुलकर नाटक का विषय चुनते हैं और सृजनात्मक रूप से इस पर कार्य करने के लिए आगे बढ़ते हैं। वर्ष 2002-2003 के दौरान शनिवारीय क्लब रविवार दिवसों में शिफ्ट हो गया और अब इसे संडे क्लब के नाम से जाना जाता है। प्रतिभागियों को प्रशिक्षण दो भागों में दिया जाता है। भाग- I में नाट्य लेखन, तत्कालिक प्रक्रिया इत्यादि शामिल रहती हैं जिससे कि बच्चों को नाटक तैयार करने में सहायता मिल सके। संडे क्लब-I में प्रशिक्षण पूर्ण करने के उपरांत बच्चे संडे क्लब- II की ओर बढ़ते हैं जहां उनका रंगमंच से परिचय एक विषय के रूप में होता है। प्रशिक्षण मिलने के फलस्वरूप क्लब में नाटक तैयार किए जाते हैं जिन्हें अभिभावकों और साथ ही व्यापक जन समूह के समक्ष मंचित किया जाता है। हाल ही में जनवरी 2010 में संडे क्लब उत्सव आयोजित किया गया। पूर्व नाट्य समारोह
रा.ना.वि. ने अपने विस्तार कार्यक्रम के अंतर्गत उत्तर-पूर्व के राज्यों में रंगमंच कार्यशालाओं की एक श्रृंखला आयोजित की है। कार्यशाला 3-चरण कार्यक्रम के आधार पर बढ़ती है पहले चरण में रंगमंच अनुभव – प्रस्तुति और अंतरण की जटिलताओं के बारे में सभी प्रतिभागियों के बीच रुचि पैदा करना था। दूसरे चरण में उस क्षेत्र में प्रशिक्षण प्रदान करना था और तीसरे चरण में प्रशिक्षण के आधार पर प्रस्तुति तैयार करने में सहयोग और मार्गदर्शित करना था। एक बार जब सभी प्रस्तुतियां तैयार हो गईं प्रतिभागियों को क्षेत्र के अलग-अलग स्थानों में प्रत्येक स्थान पर 10 शो मंचित करने का अवसर दिया गया जिससे कि उनमें आत्मविश्वास आए और वे विविध अनुभव प्राप्त कर सकें और साथ ही दर्शक के साथ पारस्परिक तालमेल बिठा सकें और अंतत: विद्यालय ने इस प्रस्तुतियों को मंचित करने के लिए मंच प्रदान करने का निर्णय लिया और यहीं से पूर्वोत्तर नाट्य समारोह ने जन्म लिया। संस्कृति निदेशालय असम सरकार के सहयोग से राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में पहला पूर्वोत्तर नाट्य समारोह जिसमें कुल 28 नाटक मंचित किए गए मैं उच्च क्षेत्र की सृजनात्मक प्रतिभा को प्रस्तुत किया गया। तभी से वरिष्ठ रंगमंच व्यक्तिव जैसे कन्हाई लाल, रतन थियम, दुलाल रॉय और रामगोपाल बजाज ने उत्सव में प्रतिभागिता की और उभरती हुई प्रतिभा और अनुभव का संश्लेषण किया। हालांकि अधिकतर प्रस्तुतियां उत्तरी-पूर्वी भाषाएं जैसे असमी, मणिपुरी, मिजो, राभा, गारो और नेपाली भी कुछ नाटक प्रस्तुति शैली और विषय वस्तु में विभिन्नता लाने के लिए उत्सव में बांग्ला, कन्नड़, मराठी, उर्दू और हिन्दी भाषा के भी शामिल किए गए। मानव जीवन और अस्तित्ववाद की विभिन्नता में एकता को रेखांकित कर, उत्सव सभी के लिए अर्थपूर्ण पारस्परिक क्रिया और कार्यों के लिए एक स्थान उपलब्ध कराने की आशा करता है।
दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय कला उत्सव एवं ऑक्टेव
गत दो वर्षों से राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दो अन्य सांस्कृतिक उत्सवों से जुड़ा रहा है। ये दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय कला उत्सव-नृत्य, संगीत, रंगमंच, बैंड, फिल्म, प्रदर्शनियों इत्यादि का एक सांस्कृतिक शानदार समारोह है और ऑक्टेव-क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्रों (क्षे.सां.के.) के सहयोग से संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित एक सांस्कृतिक उत्सव है जिसमें एक केन्द्रीय एजेन्सी भी शामिल रहती है। सबसे पहला दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय कला उत्सव, संस्कृति एवं पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार, के सहयोग से आयोजित किया गया और कई ऐसे संस्थान और संस्थानों जिन्होंने देश के इस सांस्कृतिक जज़्बे को व्यापक रूप से, ख़ासकर उन शहरों में बनाए रखा जिनमें यह आयोजित किया गया था, ने इस उत्सव में सह-भागीदारी दी। इनमें संगीत नाटक अकादेमी, साहित्य अकादेमी, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, भारतीय पर्यटन विकास निगम, मध्योतरी, फिल्म उत्सव निदेशालय, उत्तर-पूर्व क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्र, दीमापुर, ट्राइबल कॉपरेटिव मार्केटिंग डब्लपमैंट फेडेरेशन ऑफ इंडिया (TRIFED), भारतीय वन पर्यवेक्षण (FSI), भारतीय सांस्कृतिक शोध परिषद (ICCR), ललित कला अकादेमी और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय शामिल थे।
दूसरे ऑक्टेव में उत्सव में प्रतिभागिता करने वाली नाट्य मंडलियां के नाटकों के चयन का दायित्व विद्यालय पर था, इस तरह दोनों वर्षों में नाट्य और रंगमंचीय घटकों में रा.ना.वि. का योगदान रहा। |
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